क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से आजादी आई थी ||

चूमना पड़ता है फांसी का फंदा, चरखा चलाने से इंकलाब नहीं आता।

जाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनो ने
गोली खाई थी |

क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से
आजादी आई थी ||

चरखा हरदम खामोश रहा, और अंत देश
को बांट दिया |

लाखों बेघर,लाखो मर गए, जब गाँधी ने
बंदरबाँट किया ||

जिन्ना के हिस्से पाक गया , नेहरू को
हिन्दुस्तान मिला |

जो जान लुटा गए भारत पर, उन्हे ढंग
का न सम्मान मिला ||

इन्ही सियासी लोगों ने, शेखर को भी
आतंकी बतलाया था |

रोया अलफ्रेड पार्क था उस दिन, एक
एक पत्ता थर्राया था ||

जो देश के लिए जिये मरे और फाँसी के
फंदे पर झूल गए |

हमें कजरे गजरे तो याद रहे, पर अमर
पुरोधा हम भूल गए ||

क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से
आजादी आई थी ||

JAY HIND

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